हमारी संस्कृति की मान्यता है कि जिस घर में गऊ माता का निवास होता है एवं जहाँ गऊ सेवा होती है, उस स्थान पर समस्त कलेशों का नाश होता है। लेकिन सेवा के लिए सम्पूर्ण भाव भी जरूरी है और जब तक हम आंतरिक रूप से इस बात को स्वीकार नहीं करेगें कि गाय सिर्फ एक पशु नहीं है, तब तक हम ठीक से उसकी सेवा नहीं कर पाएंगे। सेवा सदा सेव्य की होती है और यह तब तक संभव नहीं है जब तक हमारे आचरण में सेव्य के प्रति आदर और सम्मान की भावना न आ जाए। गाय ही साक्षात भगवान स्वरूप है इस बात को स्वीकार कर हम गऊसेवा करे तो भगवतप्राप्ति भी हो जाएगी।
भले ही गऊमाता को हमारे समाज में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त हो और हम गाय को माता के स्वरूप में पूजते हो, लेकिन आज के बदलते परिवेश में गऊमाता की स्थिति बेहद ही चिंताजनक बनी हुई है। शहरीकरण के बढ़ते दबाव ने इस पुण्य जीव के प्राकृतिक निवास को छीन लिया है। आज हमारी गऊमाता सड़को पर इधर-उधर बेसहारा घूमने को मजबूर है और महानगरो के शहरी कचरे जिसमें विभिन्न प्रकार के टाक्सिक(जहरीले) पदार्थ होते है, उसमें से अपना भोजन तलाशते हुए देखी जा सकती है।
गऊमाता की इसी पीड़ा को देखते हुए श्री कृष्ण गऊशाला ने गऊ ग्रास योजना का आरंभ किया। ‘पहली रोटी गऊमाता के लिए’ सनातन धर्म में जहां वर्षो से यह परम्परा चली आ रही है, हमारी श्रद्धामयी इस परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए गऊभक्तों की धार्मिक आस्था को सम्मान देने के लिए यह योजना प्रारंभ की गई है। इस योजना के अंतर्गत गऊशाला का वाहन (रिक्शा) घर-घर जाता है और वहां से रोटी, आटा व अन्य खाद्य पदार्थ एकत्रित कर लाता है। गऊभक्तों के स्नेह स्वरूप मिलने वाले इस दान को गऊमाता को समर्पित कर दिया जाता है। संग्रहित समस्त सामग्री को सायं तक गऊशाला पहुंचा दिया जाता है। इस योजना को गऊभक्तों का भी पूरा स्नेह मिल रहा है, इसको देखते हुए दिल्ली शहर के विभिन्न इलाकों से गऊ ग्रास एकत्रित करने के लिए तकरीबन 55 रिक्शों का संचालन किया जा रहा है। इसके माध्यम से प्रतिदिन तकरीबन 3500 किलो रोटी व अन्य खाद्य पदार्थो को गऊमाता की सेवा में सुलभ करवाया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत स्थानीय स्तर पर गऊ ग्रास समिति का गठन किया जाता है। यह समिति ही वाहन बनाने का खर्च व वाहन चालक के परिश्रमिक की व्यवस्था करती है।