आयुर्वेद के अनुसार गऊ-अर्क कोलेस्ट्राल और शरीर की चर्बी को कम करने में काफी सहायक है। यह हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता और सेहत को स्वस्थ्य रखने वाले एंटी-आक्सीडेंट को बढ़ाता है। यह मस्तिष्क को ताकत देने के साथ ही आपके दिल का भी ख्याल रखता है। समान्यताः यह खराब हो चुके मांस-तंतु और कोशिकाओं की मरम्मत करने और पुर्नजीवित करने में काफी सहायक सिद्ध होता है। गऊ-अर्क मोटापा घटाने, शरीर में कोलेस्ट्रल की मात्रा को नियंत्रित रखने, पथरी को कम करने और जोड़ो के दर्द आदि समस्याओं को कम करने में काफी कारगर साबित होता है। यह शरीर को ताकत और ऊर्जा प्रदान करता है।
निर्देशः दो चम्मच गऊ-अर्क को स्वच्छ पानी या शहद के साथ मिलाकर सुबह के समय खाली पेट दिन में एक या दो बार लिया जा सकता है।
मुख उबटन मुहांसे, त्वचा रोगों और गर्मी के चकत्तों से निजाद दिलाता है। त्वचा की झुर्रियों, दागों को भी समाप्त करता है।निर्देशः तेजस्वनी (फेस पाउडर) करे दूध या पानी में मिलाकर चेहरे, शरीर, माथे पर लगाये।
सामग्रीः मुल्लतानी मिट्टी, गेरू, गाय का गोबर, गाय का रस, नीम के पत्तों का रस, चंदन पाउडर और कपूर एवं अजवाईन का तेल।
निर्देशः दो चम्मच गऊ-अर्क को स्वच्छ पानी या शहद के साथ मिलाकर सुबह के समय खाली पेट दिन में एक या दो बार लिया जा सकता है।
शुद्ध धूप का प्रयोग वातावरण को पवित्र करने के लिए किया जाता है। इसके प्रयोग से दिमाग को शांति मिलती है और वातावरण में सौहार्द बढ़ता है।
सामग्रीः गाय का गोबर और चुनिंदा जड़ी-बूंटियां
गोबर के यह उपले यज्ञ और अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों के दौरान प्रयोग में लाए जाते है। इनको जलाने पर वातावरण शुद्ध और पवित्र होता है। गाय के उपलों और घी को जलाने पर प्रचुर मात्रा में आक्सीजन मिलती है।
रोगाणुनाशक, स्वच्छ, सात्त्विक, पवित्र, वातावरण बनाने हेतु ।
लाभ : गऊझरण, निम-सत्व, वानस्पतिक गंधों एवं रोगानुनाशको के सम्मिश्रण से उत्पादित रोगाणुनाशक एवं सफाई के साथ-साथ उच्च सात्विक वातावरण के निर्माण में उपयोगी । गऊ-सेवा के लाभ के साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ देने वाला
उपयोग विधि :-
1लिटर पानी में 10 मी.ली.
(1%) गौ-सेवा फिनायल घोलकर
पोंछा लगाये,स्प्रे करे अथवा
सुविधानुसार प्रयोग करे प्रयोग से
पहले अच्छी तरह हिलाये ।
प्रतिवर्ष 70-80 लाख मृत्यु के दाह-संस्कार, ईंट के भट्ठे, बायलर वा एनी साधनों के लिए वृक्षों ही काट कर ईंधन के लिए इस्तेमाल करते हैं जिसके कारण लगभग 650 लाख वृक्ष प्रतिवर्ष काटने पड़ते हैं इसके कारण 80 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड को हम स्वयं वातावरण में जाने से रोक नहीं पाते | आज मानव का सांस लेना कठिन होता जा रहा है|
लेकिन भारत में हजारों वर्षों पहले से ही लकड़ी का विकल्प उपलब्ध है हमारे ग्रन्थ ऋग्वेद, गीता, रामायण इत्यादि में गाय के गोवर के उपलों के प्रयोग का वर्णन मिलता है आज भी गाँव में दाह-संस्कार अधिकतर गोबर के उपलों से ही किया जाता है|